व्यंग्य की नजर में कैसा रहा कोरोना काल; आपकी आदतों में क्या बदलाव आए, वक्त कैसे बीता, ऑफिस का काम कैसे चल रहा?

कोरोना और लॉकडाउन ने जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। भागती-दौड़ती जिंदगी आज थम सी गई है। बाजार, शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल, होटल, क्लब, पार्क सब ठहर से गए हैं। मंदिर बंद, चर्च, गुरुद्वारा, दरगाह, मस्जिद सब बंद। एक बड़ी आबादी घरों में कैद है। लोग बाहरी दुनिया से बस मोबाइल और टीवी के जरिए ही रूबरू हो पा रहे हैं। कोरोना से डर और सावधानियों के बीच लोग हंसी-मजाक के लिए थोड़ा हीसमय निकाल पा रहे हैं। लेकिन इस वक्तहंसी-मजाक जिंदगी की अहम जरूरत है। एक्सपर्ट्स भी कह रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए समझदार बनें, गंभीर नहीं।


ऐसे वक्त में जब देश में लॉकडाउन के एक महीने पूरे हो गए हैं। इस दौरान जिंदगी कैसी रही? वक्त कैसे बीता? परिवार के साथ पूरे समय रहना कैसा लगा? ऑफिस का काम घर से कैसे चल रहा? शॉपिंग करने और घूमने नहीं जा पाने से कैसा लगरहा? ऐसी ही कुछ बातें जो हमारे ईर्द-गिर्द की हैं, हमसे जुड़ी हैं, हमारी आदतों से जुड़ी हैं। इस पर भास्कर केकॉर्टूनिस्ट इस्माइल लहरी और मंसूर नकवी की व्यंग नजर...

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How was the Corona era in terms of satire, what changed in your habits, how was the time spent, how was the office work going?


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