दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन

 
भारत के राष्‍ट्रपति ने दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन के लिए अध्‍यादेश को मंजूरी दी है। इस अध्‍यादेश को अवांछनीय एवं बेईमान लोगों को उपर्युक्‍त संहिता के प्रावधानों का दुरुपयोग करने और उन्‍हें निष्‍प्रभावी बनाने से रोकने के लिए जरूरी इंतजाम करना है।
इस संशोधन का उद्देश्‍य उन लोगों को इसके दायरे से दूर रखना है जो जानबूझकर डिफॉल्‍ट करते हैं या जो फंसे कर्जों यानि एनपीए से संबंधित हैं और जिन्‍हें नियमों का पालन ना करने की आदत है।
इस तरह के मसलों के समाधान और परिसमापन की प्रक्रिया में हिस्‍सा लेने से इस तरह के लोगों को प्रतिबंधित करने के अलावा उन पर रोकथाम लगाने के निर्देश भी दिए जा सकते हैं। इसके तहत ऋणदाताओं की समिति मंजूरी देने से पूर्व विवाद समाधान योजना की लाभप्रदाता एवं संभाव्‍यता सुनिश्‍चित करेगी। इसके लिए भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड यानि आईबीबीआई को भी अतिरिक्‍त अधिकार दिए गए हैं।
आईबीबीआई के नियमों में हाल ही में संशोधन किया गया है। इससे विवाद समाधान पेश करने वाले आवेदक के पूर्ववर्ती से संबंधित सूचनाओं के साथ-साथ वरीयता, कम मूल्‍यांकन या धोखाधड़ी से जुड़े लेन-देन के बारे में जानकारियां ऋणदाताओं की समिति के समक्ष पेश की जा सकें जिससे कि वह समुचित जानकारी के आधार पर इस बारे में उचित निर्णय लिया जा सके।
दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 2,5,25,30,35 एवं 240 में संशोधन किए गए हैं। इसके साथ ही संहिता में 29ए और 235ए नामक नई धाराएं जोड़ी गई हैं।
संशोधन का सार :
इस संहिता की धारा 2 के अनुच्‍छेद ई को तीन अनुच्‍छेदों ने प्रतिस्‍थापित किया है। इससे व्‍यक्‍तियों एवं भागीदारी कंपनियों से संबंधित संहिता के भाग 3 को अलग-अलग चरणों में शुरु करने में मदद मिलेगी।
संहिता की धारा 5 के अनुच्‍छेद 25 और 26 जो समाधान संबंधी आवेदक को परिभाषिक करते हैं, में संशोधन किया गया है ताकि इस बारे में स्थिति स्‍पष्‍ट हो सके।

वहीं संहिता की धारा 25(2)(एच) में संशोधन किया गया है ताकि कर्जदारों की समिति से मंजूरी मिलने के बाद समाधान संबंधी प्रोफेशनल अर्हता की शर्तें निर्दिष्‍ट कर सके और इसके साथ ही कॉरपोरेट कर्जदार के कारोबार के परिचालन स्‍तर एवं इसकी जटिलता को ध्‍यान में रखते हुए संभावित समाधान आवेदकों से समाधान योजनाएं आमंत्रित की जा सकें।
धारा 29 ए एक नई धारा है जिसके तहत कुछ विशेष व्‍यक्‍तियों को समाधान आवेदक बनने के अयोग्‍य घोषित किया जा सकता है। ऐसे लोग जिन्‍हें अयोग्‍य घोषित किया जा रहा है उनमें निम्‍नलिखित शामिल हैं :
जो लोग या कंपनी जानबूझकर फ्रॉड या डिफॉल्‍ट करती है।
जिनके खातों को एक साल या इससे अधिक समय के लिए गैर निष्‍पादित परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है और जो ब्‍याज सहित अपनी बकाया राशि तथा समाधान योजना पेश करने से पूर्व खाते से संबंधित प्रभार का निपटान करने में विफल हैं।
जो इस संहिता के तहत कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया या परिसमापन प्रक्रिया से गुज़र रहे किसी कॉरपोरेट कर्जदार के संबंध में किसी कर्जदार को कार्यान्‍वयन योग्‍य गारंटी दे रखी है।
इस तरह दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन कर ऋणदाताओं से निपटने की तैयारी हो रही है।
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