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जानिए क्या है भीमा कोरेगांव का पूरा मामला
भीमा कोरेगांव केस ने एक नया मोड़ ले लिया है। इस मामले में नक्सली कनेक्शन के आरोप में एक्टिविस्ट को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी और नज़रबंदी को लेकर तगड़ा झटका दिया है। इस मामले में कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं।
दरअसल, एक्टिविस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एसआईटी जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया है और एक्टिविस्ट की हिरासत 4 हफ्ते बढ़ा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने पुलिस को अपनी जांच को जारी रखने का भी आदेश दिया है।
क्या है मामला
इस केस में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया है जिनमें एक्टिविस्ट वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनान गोन्साविज़, सुधा भारद्वाज और गौमत नवलखा को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है और इन लोगों को नज़रबंद भी रखा गया है। इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य लोगों ने इन आरोपियों की तत्काल रिहाई और गिरफ्तारी के लिए एसआईटी जांच की मांग करते हुए कोर्ट में अपील दायर की थी।
आरोपी नहीं चुनेंगें जांचकर्ता
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कर दिया है कि आरोपी खुद जांच टीम को नहीं चुन सकते हैं। कोर्ट ने 2-1 के बहुमत से दिए फैसले में एक्टिविस्ट्स की इस दलील को खारिज किया कि उनकी गिरफ्तारी राजनीतिक असहमतियों की वजह से की गई थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ ही जस्टिस खानविलकर ने कहा कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं बल्कि पहली नज़र में ही ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा के साथ उनके संबंधों का पता चलता है।
आपको बता दें कि भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर महाराष्ट्र पुलिस ने पांच लोगों को नक्सल लिंक के आरोप में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था। उसके बाद ये ऐक्टिविस्ट्स नजरबंद हैं।
क्या है भीमा कोरेगांव केस
महाराष्ट्र के पुणे जिले का एक छोटा सा गांव है भीमा कोरेगांव। इस गांव की जड़े मराठा इतिहास से जुड़ी हुई हैं। 1 जनवरी, 1818 यानि आज से 200 साल पहले पेशवा को ईस्ट इंडिया कंपनी से कोरेगांव में हारना पड़ा था। पेशवा की इस सेना का नेतृत्व बाजीराव कर रहे थे। इस लड़ाई को बाद में दलितों के इतिहास में एक खास जगह दी गई है। जो लोग बीआर अंबेडकर को मानते हैं वो जंग को अपनी जीत मानते हैं। उनके मुताबिक इस लड़ाई में दलितों पर अत्याचार करने वाले पेशवा की हार हुई थी।
हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते हैं। ये सब यहां विजय स्तंभ के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। ये विजय स्तंभ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था।
इस साल जनवरी में दलित समुदाय के काफी लोग यहां जमा हुए थे। जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के लोगों के बीच हिंसक झड़प हो गई। इस दौरान एक शख्स की मौत हो गई जबकि कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए।
इस हिंसा को लेकर ही पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है जिन पर केस चल रहा है।
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