क्‍या है 497 प्रावधान, सुप्रीम कोर्ट ने क्‍यों माना गैर कानूनी

इन दिनों आईपीसी की धारा 497 चर्चा में बनी हुई है। सदियों पुरानी इस धारा को भी बदलने की मांग जोरों से उठ रही है। 27 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने 497 प्रावधान को असंवैधानिक करार दे दिया जिसके तहत विवाहेत्तर संबंधों यानि अडल्‍टरी को अपराध बताया गया था।
आइए जानते हैं धारा 497 के बारे में विस्‍तार से ...
क्‍या है धारा 497
साल 1860 में अंग्रेजों ने आईपीसी धारा 497 के तहत शादी के बाद किसी गैर महिला से संबंध बनाने को अपराध घोषित किया था लेकिन यह प्रावधान अपने आप में महिला विरोधी था। इस प्रावधान के तहत किसी दूसरे पुरुष की पत्‍नी से पति की इजाजत के बिना संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में रखा गया था। वहीं अगर कोई पुरुष किसी शादीशुदा महिला से संबंध उसके पति की रजामंदी से बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
पुरुषों के साथ भेदभाव
इस धारा में अवैध संबंध बनाने पर सिर्फ पुरुषों को ही अपराधी बनाया था जोकि पुरुषों के साथ लैंगिक भेदभाव है। इस साल 5 जनवरी को यह मामला पांच जजों की संवैधानिक पीठ को दे दिया गया जिसने 1 अगस्‍त से सुनवाई शुरु कर दी थी।
पति नहीं है पत्‍नी का मालिक
सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि इस प्रावधान के तहत ऐसा लगता है कि पति अपनी पत्‍नी का मालिक है। इससे एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है और उसकी सेक्‍शुअल चॉइस को रोकती है। कोर्ट के इस फैसले में कहा गया कि अब पति अपनी पत्‍नी का मालिक नहीं है बल्कि दोनों बराबर हैं। हालांकि, कोर्ट ने अडल्‍टरी को तलाक का आधार मानने से भी इनकार नहीं किया।
इस बारे में क्‍या है धार्मिक मान्‍यता
इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा कि अडल्‍टरी के लिए कैसे अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग सजाएं दी गई हैं। यहूदी धर्म में अडल्‍टरी में शामिल दोनों जेंडर के लिए मौत की सजा है। ईसाई धर्म में ईसा मसीह ने इसे पाप बताया है।
अब तक का सबसे बड़ा बदलाव
धारा 497 के संबंध में फैसला सुनाने वाले जस्टिस एफ नरीमन ने कहा कि जिस समय यह धारा लागू की गई थी उस वक्‍त देश की ज्‍यादातर आबादी के लिए तलाक का कानून नहीं था क्‍योंकि शादी को धार्मिक काम माना गया था और हिंदू पुरुष कई महिलाओं से शादी कर सकते थे। इसलिए अगर कोई शादीशुदा पुरुष अविवाहिक महिला से संबंध बनाता था तो उसे अपराध नहीं माना गया था। जब 1955-56 के बीच हिंदू कोड आया तब अडल्‍टरी को तलाक के लिए आधार माना जाने लगा।
इस फैसले को संवैधानिक रूप से अब तक का सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है। कोर्ट के इस फैसले को लेकर देश की जनता की अलग-अलग प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई इसके विरोध में खड़ा है। वैसे एक नज़र में देखने पर तो लगता है कि ये फैसला समाज में लैंगिक समानता को भी पैदा करता है।

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