सियासत वह, जहां हर ओवर में अम्पायर बदल जाते हैं- कुमार विश्वास की व्यंग्य शृंखला

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'जींद ले गया वो दिल का जानी, ये बुत बेजान रह गया...', हाजी तीसरे काले व पांचवें सफेद के बीच के बेसुरे स्केल में गाते हुए दरवाजे पर तबला पीटने लगे। समझ तो मैं गया था कि वो क्या कहना चाह रहे हैं लेकिन मैंने फिर भी छेड़ा, 'अमां हाजी, सुर-ताल न सही, मात्रा तो सही पकड़ो, जींद नहीं होता, जिंद होता है, जिंद।'

हाजी ने वाह उस्ताद वाह वाली मुद्रा में तबले से हाथ हटाए और बोलते हुए अंदर घुसे, 'मात्रा तुम पकड़ो महाकवि! शायर तो तुम हो। मैं तो बस हवा पकड़ रहा हूं।' मैंने बात को आगे बढ़ाया, 'हवा? जींद वाली हवा पकड़ ली हो तो रामगढ़ वाली भी पकड़ने की कोशिश करो। वहां तो बहुमत आ गई।' हाजी जवाबों के धनी तो हैं ही। बोले, 'भाई यही तो बात है! रामगढ़ वाली हवा तो हवा के बाद की हवा है, लेकिन जींद वाली हवा तो हवा के पहले की हवा है।

फर्क है महाकवि! विधानसभा चुनाव के बाद ये कम मायने रखता है, लेकिन जहां अभी चुनाव होने हों, वहां के लिए तो बड़ा संकेत मानो।' मैं हाजी की बात से सहमत हुआ, 'हम्म... बात तो सही कहते हो हाजी! कांग्रेस ने नेता भी इतना बड़ा खड़ा किया था, फिर भी सीट निकल गई हाथ से।'

हाजी ने कहा, 'इसी का तो मज़ा है गुरु। राजनीति आखिरी समय तक आपको निश्चिंत नहीं होने देती कि ऐसा ही होगा। और देखो भाई, यही लोकतंत्र का आनंद है। सियासत वो क्रिकेट है जहां हर ओवर में अम्पायर बदल जाते हैं। अब परसों ही तुम्हारा वो दोस्त मिला था, चौधरी। दोस्तों को बजट के लड्डू खिला रहा था। मैंने पूछा कि अमां चौधरी, न चीनी सस्ती हुई है, न मैदा और न घी, फिर काहे के लड्डू बांट रहे हो? कहने लगा कि ऐसा बजट प्रस्तुत हुआ है कि अगले तीन-चार लोकसभाओं में भाजपा की ही सरकार बनेगी!

कल दोबारा मिला तो मुंह लटक कर जमीन छूने को हो रहा था। मैंने फिर पूछ लिया कि क्या हो गया? क्यों दुःखी हो, कल तो लड्डू बांट रहे थे। तो बोला परसों दूसरे चैनल पर बजट का विश्लेषण सुना था, कल दूसरे चैनल पर देखा। नास मार दिया बजट का इन्होंने तो! मैंने उसे कहा कि चौधरी साहब ठीक से भगत हुए नहीं हो अभी वरना चैनल ही न बदलते। दुखी न हो। समझ लो कि बजट कमाल का हुआ है। असली भगत वो, जो आराध्य की घमौरी को भी अरावली समझे। कोशिश जारी रखो हो जाओगे।'

मैंने कहा, 'तुम भी कमाल हो हाजी, और तुम्हें मिलते भी कमाल लोग हैं। खैर ये बताओ, कुम्भ में तुम्हारा धंधा-वंधा ठीक चल गया न?' हाजी मजबूती से बोले, 'मेरा तो ठीक चल ही गया महाकवि! उधर लाखों आस्थावान भक्तों के बीच कई और लोग भी कुम्भ की धार में धंधा ढूंढने के लिए डुबकियां लगा रहे हैं। कोई बात नहीं, डुबकियां लगाए बिना कुछ हासिल न होगा, ऐसा कबीर कह ही गए हैं -

'जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ'



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डॉ. कुमार विश्वास

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