मोदी बनाम कर्जमाफी, इनकी जीत-हार ही तय करेगी भाजपा की वापसी
आदित्या लोक, स्पेशल करोस्पोंडेंट:
महासमुंद का गांव सांकरा.दो हजार मतदाताओं वाले इस गांव में सबसे बड़ा मुद्दा कर्जमाफी ही है। कर्जमाफी भले ही विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा ऐलान हो, लेकिन असर लोकसभा तक दिखेगा। गांव के दिनेश पटेल, जागेश्वर साहू और चौपाल पर जमे दूसरे ग्रामीणों से जब कर्जमाफी के बारे में पूछा। तो चेहरे पर मुस्कान खिल गई। बोले-अब तो बिजली बिल भी हाफ होवत हे...। सरकार अच्छा काम करत हे...। दरअसल, सांकरा महासमुंद में मुद्दों का सबसे बड़ा चेहरा है।
सबसे पहले महासमुंद की बात। यहां कर्जमाफी सबसे बड़ा मुद्दा है। हालांकि, खेमेबाजी की वजह से प्रचार अभी बिखरा दिख रहा है। महासमुंद में फिंगेश्वर, नगरी सिहावा, धुरा मगरलोड और कुरुद का इलाका महानदी के किनारे जरूर है, इसके बावजूद किसान धान की दूसरी फसल के लिए गंगरेल बांध पर निर्भर हैं। साहू और चंद्राकर बहुल इस सीट पर दोनों दलों ने साहू प्रत्याशी उतारे हैं। इससे साहू वोट बैंक संतुष्टि के साथ बंटवारे के दोराहे पर खड़ा है लेकिन कुर्मी वोटर्स दलगत प्रतिबद्धता के साथ वोट दे सकता है। दो चुनावों से यह सीट भाजपा के पास रही है।कांग्रेस प्रत्याशी धनेंद्र साहू रायपुर जिले के अभनपुर मूल के हैं, जिसे भाजपा मुद्दा बना रही है। भाजपा के चुन्नीलाल साहू खल्लारी के स्थानीय के तौर पर पेश किए जा रहे हैं।
कांकेर में भाजपा सांसद को लेकर नाराजगी है। केशकाल घाट उतरते ही दाईं ओर एक छोटे से होटल में सुबह जुटी भीड़ का मैं भी हिस्सा बना। यहां चुनावी चर्चा ही चल रही थी। भीड़ में से एक भुवनेश्वर यादव का कहना था कि सांसद विक्रम उसेंडी ने अपनी सरकार होने का फायदा क्षेत्र के विकास में नहीं उठाया। सड़क, बिजली तो पहुंची पर लोगों के छोटे-छोटे काम तक नहीं हुए। 70 साल के हनीफ चाचा का कहना था कि विक्रम पूरे पांच साल में पहली बार केशकाल में रुके जब वे प्रदेशाध्यक्ष बन गए। भानुप्रतापपुर के गोड़मा से आए दिलेश्वर बोले- नक्सल समस्या खत्म हो जाए तो पूरा बस्तर दौड़ने लगेगा।
पिछले चार चुनावों से कांकेर बीजेपी का गढ़ रहा है। इस बार दोनों दलों ने नए चेहरे उतारे हैं। कांग्रेस के बीरेश ठाकुर ने तो टिकट के इंतजार में 25 साल की सहनशीलता दिखाई है। उनका सामना पीएससी मेंबर रहे संघ कैडर के मोहन मंडावी से है। यहां भाजपा का कैडर कुछ घर बैठा नजर आता है। इसलिए पहले संघ के प्रांत प्रमुख रहे दीपक विस्पुते और अब पूर्व सीएम रमन सिंह को कैम्प करना पड़ा।
बस्तर में इस बार कांग्रेस चुनौती देती दिख रही है। भाजपा पहली बार चुनाव कश्यप परिवार के बगैर लड़ रही है। स्व. बलिराम कश्यप के बाद उनके बेटे दिनेश दो बार सांसद रहे। इस बार दिनेश की टिकट काटकर उसी समाज के पूर्व विधायक व जिलाध्यक्ष बैदूराम कश्यप को उतारा गया है। चुनाव की कमान पूर्व मंत्री केदार कश्यप और पूर्व विधायकों के हाथों में है। बस्तर गोंड़ बहुल है। इसी वर्ग से दो बार के विधायक दीपक बैज कांग्रेस प्रत्याशी हैं। भाजपा को महरा, मुस्लिम और ईसाई कुल 60 हजार वोटरों के रुख की चिंता है तो कांग्रेस को इनका सहारा।
ओबीसी और आदिवासी बहुल राजनांदगांव सीट पर कभी राजपरिवार का दबदबा रहा है। कांग्रेस की यह सीट राज्य बनने के बाद से भाजपा का गढ़ हो गई है। यहां विधानसभा की 8 सीटें हैं। इनमें से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है। यहां भी मोहला-मानपुर से कवर्धा तक नक्सली मूवमेंट है। इसलिए हर बार की तरह इस बार भी यह एक चुनावी मुद्दा है। भाजपा ने संतोष पांडे तो कांग्रेस ने भोलाराम साहू पर दांव लगाया है। चुनाव की कमान भाजपा से पूर्व सीएम रमन सिंह और उनके बेटे सांसद अभिषेक सिंह तो कांग्रेस की ओर से कद्दावर मंत्री मो. अकबर के हाथ है।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती रमन सिंह के गृह और निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा में मिली हार के दो लाख वोटों की खाई को पाटना है। संगठन की नाराजगी के सवाल पर अभिषेक सिंह कहते हैं कि तीन महीने में स्थिति बदल गई है। राजनांदगांव इस बार मोदीजी को वोट कर रहा है। रमन सिंह के कार्यकाल में नांदगांव के विकास पर वोट पड़ेंगे। युवा चेहरे संतोष पांडे के पीछे संघ और संगठन का कैडर भी जुटा है। इधर, मंत्री मो. अकबर कहते हैं कि कर्जमाफी, धान का बोनस और बिजली बिल आधा करने से लोग फिर कांग्रेस को ही चुनेंगे। लोग भाजपा के कुशासन को भूले नहीं है। व्यापारी उत्तम चौरड़िया और मयंक गिड़िया कहते हैं कि जीएसटी से वे ही नाखुश हैं जो दो नंबर का काम करते थे । अब यह कोई मुद्दा नहीं रह गया। मुद्दा तो मोदी और राष्ट्रवाद हैं।
इन चारों सीटों पर किसान ही निर्णायक होंगे
मुद्दे: कर्जमाफी और बिजली बिल आधा करने और धान का बोनस जैसे कांग्रेस सरकार के फैसलों का जबरदस्त असर दिखता है। नक्सलवाद हमेशा की तरह मुद्दा रहेगा। मोदी फैक्टर भी बड़ा असर डालेगा।
जातीय समीकरण: बस्तर और कांकेर में गोंड़ व कश्यप के साथ डेढ़ लाख से अधिक महरा, ईसाई, मुस्लिम वोटर निर्णायक होंगे। वहीं महासमुंद और नांदगांव में साहू, कुर्मी के साथ सतनामी व मारवाड़ियों की बहुलता।
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