भीख मांगने के लिए 5 हजार रुपए देकर जमानत ले रहे भिखारी, वकील साथ लाते हैं
जयश्री बोकिल, पुणे.कोर्ट में पेशी होने पर वे अपने साथ वकील लेकर आते हैं। जमानत के लिए तीन से पांचहजार रुपए दे देना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। यहां किसी पेशेवर अपराधी की बात नहीं हो रही है। मामला भिखारियों का है, जो भीख मांगना जारी रखने के लिए यह सब कर रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेश को भिखारी मुक्त बनाने की मुहिम छेड़ रखी है। पुलिस भिखारियों को पकड़कर कोर्ट ले जाती है, जहां से उन्हें पुनर्वास केंद्र भेजा जाता है। लेकिन ज्यादातर भिखारी जमानत देकर फिर से भीख मांगना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यही वजह है कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे पुनर्वास केंद्रों में भिखारियों की संख्या चार साल में 38 फीसदी तक घट गई है।
'ईजी मनी' का यह ट्रेंड ऐसा है कि पकड़े जाने पर भिखारी कोर्ट में वकील पेश कर रहे हैं। 3,000 से 5,000 रुपए की जमानत भी चुका रहे हैं। पिछले साल पुणे में ही 60 से ज्यादा और राज्य में 200 से ज्यादा भिखारियों ने जमानत कराई। जज के सामने कहा कि भीख नहीं मांगेंगे, लेकिन छूटते ही फिर भीख मांगने लगे।
अपराध विभाग के सहायक पुलिस आयुक्त भानुप्रताप बर्गे का कहना है कि भिखारियों को ईजी मनी की आदत लग गई है। नगदी जमा कर, दंड की रसीद फाड़कर या जमानत की राशि तत्काल चुकाकर वह बाहर हो जाते हैं। इस वजह से पुनर्वास केंद्रों के आंकड़ों में गिरावट दिखती है। लेकिन रास्ते पर भीख मांगने वालों की संख्या कम नहीं हो रही।
सामाजिक सुरक्षा विभाग की एसएसपी मनीषा झेंडे भी बताती हैं कि जब भीख मांगने वालों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया जाता है तो कई बार वे वकील लेकर आते हैं और जमानत ले लेते हैं। यदि राज्य को वास्तव में भिखारियों से मुक्त करना है तो जमानत की राशि बढ़ानी होगी। साथ ही अभी जो दंड है, उसे और कड़ा करना होगा।
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य को भिखारियों से मुक्त करने के लिए 14 स्थानों पर पुनर्वास केंद्र खोले हैं। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बैगिंग एक्ट, 1959, के तहत राज्य में भिक्षावृत्ति एक अपराध है। पुलिस द्वारा भिखारियों को सड़क से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के बाद पुनर्वास केंद्र भेजा जाता है।
यहां 14 दिन की प्रोबेशन अवधि के बाद यह तय किया जाता है कि उन्हें कहां और कौन-सी ट्रेनिंग दी जानी है। पुणे के बैगर्स रिसीविंग सेंटर की शुभांगी झोडगे बताती हैं कि पुणे के पुनर्वास केंद्र में 100 पुरुषों और 15 स्त्रियों के पुनर्वास की व्यवस्था है। लेकिन सीखकर, मेहनत कर पैसा कमाने की प्रवृत्ति की कमी इन भिखारियों में नजर आती है।
वे यहां सालभर रहते हैं, अलग-अलग कौशल सीखते हैं। फिर ज्यादातर सड़कों पर भीख मांगने लौट जाते हैं। इस अभियान में शामिल एक अधिकारी ने कहा कि भिखारियों पर की गई कार्रवाई को लेकर पुलिस के पास भी कानून और क्रियान्वयन की जानकारी की कमी महसूस की गई है। छापा मारने और भिखारियों को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया में उनके साथ केंद्र के अधिकारी भी जा सकते हैं।
पकड़े गए भिखारियों को सीधे कोर्ट में पेश करना होता है, जहां वे आसानी से जमानत दाखिल कर आजाद हो जाते हैं। जो यह नहीं कर पाते, वे कोर्ट के आदेश पर पुनर्वास केंद्र में भेजे जाते हैं। इन केंद्रों में सिलाई-कढ़ाई, झाडू निर्माण जैसे काम सिखाए जाते हैं। लेकिन यह सीखकर भी भिखारी सड़कों पर लौट जाते हैं।
| वर्ष | पुनर्वास केंद्र में भिखारी |
| 2013-14 | 10,483 |
| 2014-15 | 9,504 |
| 2015-16 | 8,805 |
| 2016-17 | 6,451 |
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