बरगद के पेड़ से मशहूर था डॉ. राधाकृष्णन का स्कूल, अब प्रार्थना से पहले रोज सुनाते हैं उनका किस्सा

आदित्या लोक, स्पेशल करोस्पोंडेंट:

तिरुतणी (संजय रमन, चेन्नई).कार्तिकेयन, जयकुमार और जयचंद्रन तिरुतणी के सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल के टीचर हैं। ये तीनों इसी स्कूल में पढ़े भी है। ये वह स्कूल हैं जहां देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पहली पढ़ाई की थी। जयचंद्रन कहते हैं कि टीचर बनने के लिए हुए इंटरव्यू में उनसे पहला सवाल डॉ. राधाकृष्णन के बारे में ही पूछा गया था। इसी स्कूल में पोस्टिंग हो इसके लिए उन्होंने कई साल इंतजार किया है। कहते हैं यूं तो तिरुतणी में दस प्राइवेट और दो सरकारी स्कूल हैं लेकिन इस स्कूल में पढ़ने और पढ़ाने वाले खुद को खुशनसीब मानते हैं।

आंगन में बरगद के एक पुराने पेड़ के चलते यह स्कूल आलमरम हायर सेकंडरी स्कूल के नाम से मशहूर था। तमिल में बरगद को आलमरम कहा जाता है। आज आंगन में बरगद नहीं, लेकिन उसका चबूतरा मौजूद है। चेन्नई से 50 किमी दूर बसे तिरुतणी गांव के इस स्कूल में राधाकृष्णन पांचवी तक पढ़े थे।

परिवार की तरफ से स्कॉलरशिप दी जाती है

गांव में ही उनका एक घर है जो अब लाइब्रेरी है। उनके परिवार वाले और रिश्तेदारों में से अब कोई भी यहां नहीं रहता। हां, उनकी पड़पोतियां हर साल उनके जन्मदिवस यानी शिक्षक दिवस 5 सितंबर को चेन्नई से यहां आती हैं। उनके परिवार की ओर से स्कूल के बच्चों को स्कॉलरशिप भी दी जाती है। ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है। स्कूल की एक खास परंपरा ये भी है कि यहां हर दिन सुबह की प्रार्थना के पहले बच्चों को राधाकृष्णन से जुड़ा कोई किस्सा या कहानी सुनाई जाती है। इन दिनों ये जिम्मा कार्तिकेयन का है, लेकिन वे कहते हैं परंपरा 15 सालों से एक भी दिन टूटी नहीं है। जब किसी शिक्षक का तबादला हो जाता है तो कोई और इसकी जिम्मेदारी उठा लेता है। गांधीवादी विचारधारा के समर्थक रहे राधाकृष्णन के इस स्कूल में हर रोज बच्चों को गांधीजी के बारे में भी बताया और सुनाया जाता है। इसी स्कूल से पढ़े पयनी शेखर अब जिला शिक्षा अधिकारी बन चुके हैं, जिनका दफ्तर स्कूल के कैम्पस में ही है। वह कहते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति की तरह ही इस स्कूल के बच्चों की टेक्नॉलजी में खास रुचि है। उनकी हमेशा कोशिश रहती है कि बच्चों की इस रुचि में स्कूल उनका पूरा सहयोग करे।

1954 में भारत रत्न सम्मान दिया गया
शिक्षा के सबसे बड़े पुरोधा रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वे 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किए गए थे। जब वे राष्ट्रपति बने, तब छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाना चाहा। इस पर उन्होंने कहा- 'मेरा जन्मदिन मनाने की बजाय 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाए तो शिक्षकों के लिए गर्व की बात होगी।' तभी से शिक्षक दिवस की परंपरा पड़ी। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वे ऐसे शिक्षक रहे, जो देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने।

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तस्वीर उसी कमरे की है, जिसमें डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी पढ़ाई किया करते थे।

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