मानसून का पैटर्न बदलने के संकेत: इस बार कम दिनों में ज्यादा बारिश हुई, 13 राज्यों में बाढ़ आई

आदित्या लोक, स्पेशल करोस्पोंडेंट:

नई दिल्ली. देशभर के कई हिस्सों में इस बार भारी बारिश हुई। इस बार अभी तक देश के 84% हिस्सों में सामान्य से ज्यादा बारिश हो चुकी है। इस साल भारी बारिश के कारण बाढ़, भूस्खलन, दीवार गिरने और डूबने जैसी घटनाओं में 1300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बार की बारिश यह इशारा करती है कि मानसून का पैटर्न बदल रहा है। पिछले कुछ सालों में बाढ़ कुछ राज्यों तक ही सीमित रहती थी। इस साल 13 राज्यों में बाढ़ आई। 7 जुलाई तक देशभर में बारिश सामान्य से कम थी। इसके बाद 50 दिनों की बारिश ने कई राज्यों में मानसून का कोटा पूरा कर दिया।

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मानसून का पैटर्न बदलने के संकेत क्यों?
1) जुलाई में 914 बार और अगस्त में 1200 से ज्यादा बार भारी या मूसलाधार बारिश हुई

मौसम विभाग मानसून के आंकड़ों की गणना जून से सितंबर के बीच करता है। इस बार जून में बारिश का असर कम रहा और सितंबर का महीना अभी बाकी है। बीच के दो महीने यानी जुलाई और अगस्त के करीब 60 दिनों में इस बार मूसलाधार बारिश के दौर आए। उदाहरण के लिए जुलाई के 15 से ज्यादा दिनों में देशभर में 914 बार भारी या मूसलाधार बारिश दर्ज की गई। वहीं, अगस्त के 18 दिनों में 1200 से ज्यादा बार भारी या मूसलाधार बारिश हुई। जब 24 घंटे में 115.6 मिमी से लेकर 204.4 मिमी तक बारिश होती है तो उसे भारी बारिश कहा जाता है। 24 घंटे में 204.5 मिमी या उससे ज्यादा पानी गिरने को मूसलाधार बारिश कहते हैं।

2) कम दिनों में ज्यादा बारिश वाले स्थानों की संख्या बढ़ी
मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. केजे रमेश ने भास्कर ऐप को बताया कि जब 2 से 3 दिन तक लगातार बारिश होती है, तो उसे एक्स्ट्रीम हेवी रेनफॉल पीरियड कहते हैं। आजकल जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में एक्स्ट्रीम हेवी रेनफॉल पीरियड बढ़ रहे हैं। यानी, कुछ ही समय में ज्यादा से ज्यादा बारिश हो रही है। इससे बाढ़ के हालात बन रहे हैं। पिछले साल तक केरल या तटीय महाराष्ट्र में एक्स्ट्रीम हेवी रेनफॉल पीरियड देखने को मिलता था। इस बार कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब और मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में यह देखने को मिला। इस कारण इन राज्यों में बाढ़ आई। पहले भी इतनी ज्यादा बारिश होती रही है, लेकिन अब कम दिनों में ज्यादा बारिश वाले स्थान बढ़ गए हैं।

3) शुरू में मानसून कमजोर रहा, लेकिन जुलाई के बाद यह सक्रिय हुआ
मैग्जीन डाउन टू अर्थ से जुड़े पर्यावरण एक्सपर्ट अक्षित संगोमला बताते हैं कि शुरुआती फेज में मानसून कम सक्रिय था। जून के अंत तक सामान्य से 33% कम बारिश दर्ज की गई थी, लेकिन 7 जुलाई के बाद मानसून सक्रिय हुआ। इसके बाद बाढ़ के हालात बने। जुलाई में काफी कम दिन में ज्यादा बारिश हुई। इससे बिहार, असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में बाढ़ आई। इसके बाद अगस्त में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और गोवा में भी कम समय में ज्यादा बारिश होने से बाढ़ आई। इस बार यह पैटर्न देखने को मिल रहा है कि कई दिनों तक बारिश नहीं होती, फिर कुछ ही दिनों में ज्यादा बारिश हो जाती है।


4) जंगल कम हो रहे, प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ रहा; इससे बाढ़ का खतरा भी बढ़ा
एनजीओ वर्ल्ड विजन में डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के एसोसिएट डायरेक्टर फ्रैंकलीन जोन्स भी यही बात कहते हैं कि अब देश के कई हिस्सों में मानसून का पैटर्न बदल रहा है। यानी अब बारिश के दिनों की अवधि कम हो रही है, जबकि बारिश की तीव्रता बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जंगलों की कटाई, प्लास्टिक का ज्यादा इस्तेमाल और ड्रेनेज सिस्टम की खामियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए पहले जहां बहुत घना जंगल हुआ करता था, वहां अब कम पेड़ बचे हैं। इससे मिट्टी का क्षरण, भूस्खलन, फ्लैश फ्लड होता है। जनहानि के साथ-साथ संपत्ति को भी नुकसान पहुंचता है।


देश का 50% बाढ़ प्रभावित क्षेत्र गंगा बेसिन राज्यों में
गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग की 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 50 मिलियन हेक्टेयर है। इसमें से 24 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र गंगा बेसिन राज्यों में पड़ता है। यानी, देश में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 50% हिस्सा गंगा बेसिन राज्यों में है। रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा बेसिन 11 राज्य- उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल हैं। गंगा बेसिन राज्यों में से भी बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं। मानसून में गंगा नदी और इसकी सहायक नदियों का जलस्तर बढ़ जाने से बाढ़ की स्थिति बन जाती है। डॉ. रमेश बताते हैं कि बाढ़ आने का एक कारण विकास कार्य भी है। पानी गिरता है, तो वो अपना निकास ढूंढता और उसके निकास के लिए ड्रेनेज सिस्टम बनाए जाते हैं। अब सड़क या बिल्डिंग बनाकर पानी की निकासी को ब्लॉक किया जा रहा है। इससे पानी एक जगह जमा हो जाता है और वहां बाढ़ आ जाती है।


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इस साल बाढ़ से अब तक 1300 से ज्यादा मौतें
गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि इस साल 1 जून से 29 अगस्त तक बाढ़ से 1,379 लोगों की मौत हो गई। ये आंकड़े 13 राज्यों के ही हैं, जबकि बाकी राज्यों में या तो कोई जनहानि नहीं हुई या फिर वहां से रिपोर्ट नहीं आई। अभी तक सबसे ज्यादा 271 मौतें महाराष्ट्र में हुई हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 179 लोग मारे गए हैं। 2018 में बाढ़ से 2,045 लोगों की मौत हुई थी। इससे पहले 1953 से लेकर 2017 तक 64 साल में 1,07,487 लोग बाढ़ की वजह से मारे गए।


कमजोर फ्लड अलर्ट सिस्टम
पर्यावरण विशेषज्ञ अक्षित कहते हैं कि हमारे यहां फ्लड अलर्ट सिस्टम बेहद कमजोर है। नेपाल से बाढ़ का अलर्ट बिहार आने में 48 घंटे लग गए थे। जब तक अलर्ट आया, तब तक बाढ़ आ चुकी थी। इससे लोगों को सुरक्षित जगह पर जाने का मौका नहीं मिल पाया। मौसम विभाग बाढ़ का अलर्ट तभी जारी करता है, जब भारी, बहुत भारी या मूसलाधार बारिश होने का अनुमान हो। कई बार भारी या बहुत भारी बारिश नहीं होने पर भी बाढ़ आ जाती है। मौसम विभाग के अलावा केंद्रीय जल आयोग भी बाढ़ की निगरानी का काम करता है, लेकिन आयोग और मौसम विभाग के बीच सही तालमेल नहीं होने के कारण फ्लड अलर्ट सिस्टम समय से पहले नहीं आता और लोगों की जान चली जाती है।


जलाशयों के प्रबंधन का पुख्ता सिस्टम नहीं
डॉ. रमेश कहते हैं कि हमें भारी बारिश की चेतावनी तो मिल रही है, लेकिन नदी-तालाब में कितना पानी है, उसका स्तर क्या है, अतिरिक्त पानी आएगा तो उसकी क्षमता क्या होगी, उसमें कब-कितना पानी छोड़ना है, इसका पुख्ता सिस्टम अभी हमारे पास नहीं है। हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय बना है, वहां इस पर लेकर काम हो रहा है। हमें इंटीग्रेटेड बेसिन वॉटर मैनेजमेंट पर काम करना होगा। इससे हम बाढ़ को तो नहीं रोक पाएंगे लेकिन उसकी तीव्रता जरूर काम कर सकेंगे। अभी किसी राज्य ने बेसिन में पानी छोड़ दिया तो दूसरे राज्य में बाढ़ आ जाती है। इसलिए सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को मिलकर इस पर काम करने की जरूरत है।



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