हुलहुली शब्द से जन्मी थी होली, इसमें और विजयादशमी में एक समानता है
आदित्या लोक, स्पेशल करोस्पोंडेंट:
पुराण और वैदिक परंपराएं होली को एक यज्ञ के रूप में स्वीकार करती हैं। जिस तरह विजयादशमी जीत का पर्व है, वैसे ही होली भी विजय का पर्व है। दशहरा शत्रु पर तो होली स्वयं पर विजय का उत्सव है। भीतर की बुराई को होली की अग्नि में दहन करना, वैमनस्य को भूल कर प्रेम के रंगों में सराबोर होना। ये होली है। वेदों से लेकर आधुनिक ग्रंथों तक में होली, फाग उत्सव और वसंतोत्सव की महिमा गाई है। वैदिक परंपरा होली को यज्ञ ही मानती है। शमी की लकड़ियों का सामूहिक रूप से दहन और उसमें औषधियों के साथ नई फसल की बालियों का जलाना यज्ञ जैसा ही है।
होली : वेद से उपनिषदों तक!
होली शब्द का अर्थ बहुत अलग है। इसका मूल रूप हुलहुली (शुभ अवसर की ध्वनि) शब्द है, जो ऋ-ऋ-लृ का लगातार उच्चारण है। मुंडक उपनिषद कहता है कि आकाश के 5 मण्डल हैं, जिनमें पूर्ण विश्व तथा ब्रह्माण्ड हमारे अनुभव से परे हैं। सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी का अनुभव होता है, जो शिव के 3 नेत्र हैं। इनके चिह्न 5 मूल स्वर हैं- अ, इ, उ, ऋ, लृ। शिव के 3 नेत्रों का स्मरण ही होली है।
अग्निर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्र सूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्विवृताश्च वेदाः। (मुण्डक उपनिषद्, 2/1/4)
विजय के लिये उलुलय (होली) का उच्चारण होता है। अथर्ववेद कहता है कि विजय के लिए निकले वीरों का विजय घोष उलुलय (विजय या शुभ अवसर की ध्वनि) होता है। होली विजय का उत्सव है। विजय का राग है। जीत की ध्वनि है।
उद्धर्षतां मघवन् वाजिनान्युद वीराणां जयतामेतु घोषः।
पृथग् घोषा उलुलयः एतुमन्त उदीरताम्। (अथर्ववेद 3/19/6)
वेद ये मानते हैं कि संवत्सर (नए वर्ष) की शुरुआत अग्नि से होती है, चैत्र मास गर्मी के मौसम में होता है। सूर्य अपने ताप के उच्चतम स्तर पर होता है। साल का अंत होते-होते ये अग्नि समाप्त हो जाती है। इसलिए नए साल की शुरुआत के पहले फिर अग्नि प्रज्वलित की जाती है। यही अग्नि फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर जलाई जाने वाली होली है।
अग्निर्जागार तमृचः कामयन्ते, अग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति।
अग्निर्जागार तमयं सोम आह-तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः। (ऋग्वेद 5/44/15)
अग्नि का पुनः ज्वलन-सम्वत्सर रूपी अग्नि वर्ष के अन्त में खर्च हो जाती है, अतः उसे पुनः जलाते हैं, जो सम्वत्-दहन है।
होली : बृज भूमि, कृष्ण की लीला और फाल्गुन मास
ये कृष्ण की भक्ति का त्योहार है। राधा-कृष्ण के प्रेम का बसंतोत्सव। बृज मंडल में फाल्गुन एक दिन का नहीं, महीनेभर का उत्सव है। कहा जाता है बृज में बारह मास बसंत है। कृष्ण ने सबसे पहले भेदभाव मिटाया। ग्वालों को साथ लेकर उनके लिए माखन तक चोरी किया। एक रस और एक भाव का संदेश दिया। गोप-गोपियों को अपने समकक्ष खड़ा किया। उद्धव के ज्ञान और भक्ति का मान, गोपियों के प्रेम की पराकाष्ठा से भंग किया। उद्धव ने अपने ज्ञान और भक्ति पर थोड़ा अहंकार दिखाया तो उन्हें कहा कि बृज मंडल में जाकर गोपियों का संदेश लेकर आएं। गोपियों की दशा देख उद्धव को भान हुआ कि प्रेम तो भक्ति और ज्ञान दोनों पर भारी है। कृष्ण के इसी प्रेम का प्रतीक है फाग उत्सव।
पहले फाग और होलिका दहन अलग-अलग थे
विद्वानों का मत है कि वास्तव में फाग उत्सव और होलिका दहन दो अलग-अलग विषय हैं। कालांतर में दोनों एक हो गए। कृष्ण की लीलाओं और भक्ति परंपरा में (पुष्टिमार्गीय वैष्णव भक्ति परंपरा) में कृष्ण के फाग उत्सवों का उल्लेख मिलता है। बालक कृष्ण गोप-गोपियों के साथ फाग खेले। बड़े-छोटे और ऊंचे-नीचे का भेद मिटाने के लिए। टेसू के फूलों से बने रंग, यमुना का जल और बृज की भूमि पर सबसे पहले ऐसे किसी उत्सव का उल्लेख मिला। इसी परंपरा को आज भी पूरे फाल्गुन महीने में
ये है होली की कहानी
होली के आठ दिन पहले से होलाष्टक शुरू हो जाता है। होला अष्टक मतलब होली के पहले के आठ दिन। ये शुभ कामों के लिए वर्जित हैं। सतयुग की कहानी है। सभी जानते हैं हिरण्यकशिपु नाम के दैत्य राजा के घर प्रहलाद का जन्म हुआ था। वो भगवान विष्णु का भक्त था। उसे कई तरह से प्रताड़ित किया गया। लेकिन वो डिगा नहीं। हिरण्यकशिपु की बहन थी होलिका। होलिका ने उसे जलाने के लिए षड्यंत्र रचा। उसे वरदान था- आग से ना जलने का। इसलिए हिरण्यकशिपु ने उस समय फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से भक्त प्रह्लाद को बंदी बना लिया था और तरह-तरह की यातनाएं दीं। इसके बाद पूर्णिमा पर होलिका ने भी प्रह्लाद को जलाने का प्रयास किया, लेकिन वह स्वयं ही जल गई और प्रह्लाद बच गए। होली से पहले इन आठ दिनों में प्रह्लाद को यातनाएं दी गई थीं, इस कारण ये समय होलाष्टक कहा जाता है।
ये सिखाता है होली का त्योहार
- बुराई को जलाएं : होली की आग में खुद के भीतर की बुराई को जला दें। वास्तव में ये त्योहार है बुराई को खत्म करने का, लेकिन होली पर लोग आमतौर पर शराब आदि का उपयोग करते हैं। बुराई को आत्मसात करने से जीवन खराब ही होगा। लेकिन लोग इसे मस्ती और मजे के लिए करते हैं। कोशिश करें, इस बार होली की आग में अपने भीतर की बुराइयों को जला दिया जाए। बुराई जलेगी तो मन में विश्वास और प्रेम का अंकुरण होगा।
- रंगों में छिपे रहस्यों को समझें : रंग जीवन के लिए हैं। सिर्फ एक दिन चेहरों पर रंग लपेटने से कुछ नहीं होता। इसमें छिपे संदेशों को समझ जाएं तो बहुत अच्छा है। रंगों का अपना विज्ञान है। रंगों की अपनी दुनिया है। टेसू के फूल से लेकर हल्दी से बने रंगों तक सनातन परंपरा ने रंगों को बहुत महत्व दिया है। केसरिया-पीला रंग संपन्नता का प्रतीक है, तो हरा प्रकृति का, लाल-गुलाबी रंग प्रेम का है, सफेद शांति का। हर रंग हमें कुछ ना कुछ सिखाता है। इन रंगों को जीवन में उतारें।
- भेदभाव भुला दें : अगर मन में कोई भेदभाव हो तो उसे भुला दें। दोस्त हो या दुश्मन, सबसे एक भाव से मिलें। चेहरों को रंग कर मिला ही इसलिए जाता है ताकि चेहरों में कोई भेद ना रहे। सीधे मन मिले। रंग चेहरे के भेद को मिटा देता है। इस बार होली पर हर भेद और मनमुटाव को भुलाकर मिलें। ये शुरुआत है रिश्तों की डोरी को नए सिरे से पकड़ने की। संसार में रिश्तों से बढ़कर कुछ नहीं है। रिश्ते ही संबल है, रिश्ते ही जीवन का आधार है।
- कुछ ऐसा करें कि ये होली हो जाए खास : इस होली को खास बनाने के लिए कुछ अलग करें। कोई नया रिश्ता शुरू करें। किसी रुठे को मनाएं। होली पर कुछ ऐसा करें, किसी पुराने दोस्त या रिश्तेदार जिससे रिश्तों में थोड़ी दूरी हो गई हो, उससे मिलें। अकारण ही उन लोगों से मिलें। अकारण आपका मिलना या बात करना बुझ चुके रिश्ते में एक नई जान फूंकेगा।
- एक अच्छी आदत डालें : इस होली से कोई एक अच्छी आदत डालें। किसी की मदद करने का संकल्प लें। अपनी जीवन शैली में कुछ ऐसी बातें शामिल करें जो आपको भीतर से संतुष्टि दे। जैसे किसी जरुरतमंद की मदद करें। किसी वृद्धाश्रम से जुड़ें। दोस्तों के साथ समय बिताएं। पुराने दिनों के साथियों के साथ वक्त गुजारने की कोशिश करें। अपने परिवार के लिए समय निकालें।
- संसाधनों को संवारने की पहल करें : होली मनाएं, खुलकर मनाएं, लेकिन कुछ ऐसा ना करें जिससे जल संसाधनों को हानि पहुंचे। पानी मानव जाति सिर्फ हमारा अधिकार ही नहीं है, कर्तव्य भी है। फाग का उत्सव मनाने वाले कृष्ण ने खुद यमुना को कालिया नाग के जहर से बचाने का जिम्मा उठाया था। प्रकृति की दी हुई सौगातें हमारे लिए बड़ी जिम्मेदारी हैं। होली ऐसे मनाएं जिससे पानी के संसाधनों की हानि ना हो। कोशिश करें उस दिन उन्हें ज्यादा संवारा जाए।
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