गैंगरेप पीड़िता हैंडपप से पानी भरती है तो उसे धोकर इस्तेमाल करते हैं लोग
रांची.आज पूरी दुनिया में 'मी टू' कैंपेन के जरिए महिलाएं अपने साथ हुए यौन शोषण के मामलों को उजागर करने का साहसपूर्ण कदम उठा रही हैं। ऐसे में भास्कर टीम उन युवतियों-किशोरियों का हाल जानने निकली जिन्होंने दुष्कर्म के बाद हिम्मत दिखाई और अपराधियों को पुलिस और कचहरी तक पहुंचाया। सच की खोज में भास्कर टीम की शायद ये सबसे कठिन यात्रा थी।सच तक पहुंचने का रास्ता दुरूह नहीं था, कष्टदायक था समाज के इस सच से रूबरू होना और उसे शब्दों में ढालना। राज्य में जाने कितनी लड़कियां ये सच रोज जीती हैं। भास्कर टीम की एक महीने की पड़ताल के बाद हम यहकह सकते हैं कि असली अपराध तो दुष्कर्म का केस दर्ज होने के बाद शुरू होता है। 9 युवतियों की बेचैन करने वाली आपबीती पर खास रिपोर्ट -
1. गांव के 5 लड़कों किया था दुष्कर्म
परी (काल्पनिक नाम) 16 साल की है। ढाई वर्षों से घर में कैद है। बेहद कम बोलती है। स्कूल छूट चुका है क्योंकि वहां के शिक्षक उसे क्लास में बाकी बच्चों के बीच नहीं रखना चाहते। घर से कुछ दूरी पर हैंडपंप से पानी भरने से भी लोग मना करते हैं। अगर वह पानी भर ले तो अन्य लोग पहले हैंडपंप को धुलते हैं, फिर पानी भरते हैं। यह सब इसलिए क्योंकि परी के साथ गांव के ही पांच लड़कों ने दुष्कर्म किया था।
सारे अपराधी जुवेनाइल थे, डेढ़ माह में जेल से बाहर आ गए :विडंबना यहहै कि अछूतों जैसा व्यवहार करने वालों में वे लोग भी हैं जिनके बेटों ने परी के साथ गलत किया। कानून के अनुसार, सजा दुष्कर्मियों को मिलनी चाहिए। लेकिन समाज की नजर में दोषी परी है। दुष्कर्म के बाद जन्मी परी की बच्ची को आंगनबाड़ी सेविकाओं ने पोलियो समेत जन्म के बाद के जरूरी टीके तक नहीं दिए। कहा कि बच्ची के पिता का नाम नहीं है। परी के साथ दुष्कर्म करने वाले लड़के तो सिर्फ डेढ़ महीने में जेल से छूट गए लेकिन परी को जैसे प्रताड़ना के आजीवन कारावास की सजा दे दी गई। घटना चान्हो थाना क्षेत्र के एक गांव की है। 2015 में पांच लड़कों ने परी को अगवा कर दुष्कर्म किया। तब वह 13 साल की थी। पास के ही स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ती थी। आरोपियों में से चार तो उसके साथ ही पढ़ते थे। सभी आस-पास ही रहते हैं। अपराधियों के परिजन भी परी का बहिष्कार करने वालों में शामिल हैं।
जान से मारने की कोशिश की, देते हैं धमकी :परी के केस में आरोपी गिरफ्तार तो हुए, मगर सभी जुवेनाइल थे। सिर्फ डेढ़ महीने बाद छूट गए। जेल से छूटने के बाद आरोपियों ने एक बार परी को जान से मारने की भी कोशिश की। अब भी लड़के धमकियां देते हैं।
2 साल की बेटी, ग्रामीण पांचाली कहते हैं :दुष्कर्म के कारण परी गर्भवती हो गई। अभी उसकी दो साल की बेटी है। गांव के कई लोग बच्ची को पांचाली कह कर बुलाते हैं,क्योंकि पांच लड़कों ने दुष्कर्म किया था।
5 साल से बड़ी बहन के ससुराल में रहती है :परी सात बहनों में सबसे छोटी है। माता-पिता नहीं हैं। 5 साल से बड़ी बहन के ससुराल में रह रही है। डर से परी ने घटना के बारे में घर पर कुछ नहीं कहा। घरवालों को तब पता चला जब वह करीब छह महीने की गर्भवती थी।
डेढ़ साल पहले आदेश, मुआवजा नहीं मिला :परी को मुआवजा देने का आदेश 10 जनवरी 2017 को दिया गया था। अब तक नहीं मिला है। कुछ दिनों पहले आश्वासन मिला है कि जल्दी ही मुआवजा मिल जाएगा।
2. बालकनी में जाने में भी डर लगता है, लोग गंदी नजरों से देखते हैं
मानगो की 17 साल की मासूम की कहानी भयावह है। अप्रैल, 2017 में परिचित ने ही घर में हवस का शिकार बनाया, फिर सामूहिक दुष्कर्म हुआ और वेश्यावृत्ति की राह पर धकेलने की कोशिश हुई। आठ महीने तक उसने पीड़ा झेली। जनवरी 2018 में उसने केस किया। उसके साथ ज्यादती करनेवालों की लिस्ट में पूर्व डीएसपी, थानेदार, सफेदपोश लोग भी शामिल हैं। दो आरोपी जेल में हैं, एक जमानत पर छूट गया है। मामले में सीआईडी जांच चल रही है। आरोपी पुलिस अफसरों का तबादला कर दिया गया है। पीड़िता के घर के ड्राइंग हॉल में एक्वेरियम रखा है। वह मछलियों को घंटों देखती रहती है। अधिकतर समय खामोश रहती है।
मछलियों की तरह जिंदगी: पीड़िता का कहना है- "मेरी जिंदगी इन मछलियों की तरह है। एक कमरे में कैद। जिसे न जीने का अधिकार है, न मरने का। कुछ दरिंदों के कारण मैं भी एक्वेरियम में कैद होकर रह गई हूं। मुझे भी बाहर घूमना अच्छा लगता था, लेकिन अब बालकनी में जाने में भी डर लगता है। लोग गंदी नजरों से घूरते हैं। उनकी नजरें हादसे को याद दिलाती हैं। उन लोगों ने 8 महीने तक रोज मुझसे दुष्कर्म किया। इंजेक्शन लगवाकर मेरे शरीर से खेला जाता। चार आरोपी नियमित थे, बाकी आते-जाते रहते थे। मैं विरोध करती तो वे मुझे पीटते थे। मुझे रोने भी नहीं देते। एक महिला मुझे बेल्ट से मारती थी। लेकिन मैं हारने वाली नहीं हूं। दोषियों को सबक सिखाकर रहूंगी। अब एक ही मकसद है, दोषियों को कड़ी सजा दिलवाना। इसके बाद मैं यह शहर ही छोड़ दूंगी। भगवान जाने आगे मेरे साथ क्या होने वाला है?'

3. पहली बार दुष्कर्म हुआ तो परिवार ने दूर भेजा, लौटी तो उसी आदमी ने दोबारा तार-तार किया
मानसी (काल्पनिक नाम) 10वी की पढ़ाई के दौरान गांव के नामी व्यक्ति ने दुष्कर्म किया। चूंकि वह व्यक्ति नामी था और लड़की के पिता की नौकरी उसके द्वारा ही लगाई गई थी इसलिए केस दर्ज नहीं किया गया। लड़की को माता पिता ने नानी के घर भेज दिया। वहीं रह कर पढ़ाई की उसने। 2 साल बाद जब 12वीं की परीक्षा के लिए वापस अपने पिता के पास गयी तो दूसरी बार फिर उस व्यक्ति ने लड़की के साथ दुष्कर्म किया। इस घटना के बाद जब लड़की थाने गई तो उसका केस दर्ज नहीं लिया गया क्योंकि वहां उस व्यक्ति के पहचान के काफी लोग थे। महिला थाना में रिपोर्ट लिखाई, करीब 1 महीने तक चले इस केस में लड़की ने केस जीता। दुष्कर्मी को सजा के साथ जुर्माना देना पड़ा।
पढ़ाई पूरी नहीं हुई, सपने अधूरे रह गए :पीड़िता कहती है- "पहली बार जब मेरे साथ ऐसा हुआ तो मैं डर गई थी। घरवालों ने दूर भेज दिया, लगा सबकुछ ठीक होने लगा है। मगर दो साल बाद लौटी तो फिर वही दरिंदगी झेलनी पड़ी। अब लगा कि डर गई तो सबकुछ खत्म हो जाएगा। लड़ी, केस भी जीत गई, लेकिन इस पूरे प्रकरण की वजह से मेरी जिंदगी थम सी गई। मैं जो करना चाहती थी, जो सपने थे, वह सब कहीं पीछे छूट गए। पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाई। अब टाइपिस्ट की नौकरी करती हूं, मगर अधूरे सपनों की टीस हमेशा चुभती है।"
4. झारखंड का पहला केस, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश पर पीड़िता को गर्भपात की इजाजत
अक्टूबर 2017...बिरसानगर की 11 साल की मासूम को पड़ोसी ने अपनी हवस का शिकार बनाया। माता-पिता काम पर जाते तो आरोपी घर में घुसता और उसे रौंदता। पेट दर्द की शिकायत पर परिजनों ने उसे डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बताया कि वह तीन महीने के गर्भ से है। मामला थाने पहुंचा। पुलिस ने अाराेपी को जेल भेज दिया। मासूम की उम्र कम थी। बच्चे को जन्म देने में जान को खतरा हो सकता था। झारखंड हाईकोर्ट से गर्भपात की इजाजत मांगी गई। राज्य का पहला केस था, जब छुट्टियों में तीन दिन के लिए स्पेशल बेंच बैठी। कोर्ट के आदेश पर रिम्स में बच्ची का गर्भपात कराया गया। अब वह हादसे को भुलाकर पढ़ाई करना चाहती है। एक सरकारी स्कूल में सातवीं क्लास की छात्रा है।
डर से घर से निकलना ही छोड़ दिया था:पीड़िता कहती है- "अंकल के डर से सबकुछ सहती रही। खौफ ऐसा था कि घर से निकलना ताे दूर, खिड़की से झांकना भी छोड़ दिया था। मेरी जिंदगी ठहर सी गई थी, लेकिन मां और पड़ोस की दीदी ने हिम्मत दी। अब डरना छोड़ दिया है। रात 8 बजे भी अकेले घर आती-जाती हूं। मैंने कमजोरी को ही ताकत बना लिया है। आरोपी को सबक सिखाऊंगी। वकील बनना चाहती हूं। वकील बनकर मेरी जैसी पीड़िताअाें को इंसाफ दिलवाऊंगी। अपने पैरों पर खड़े होकर परिवार और छोटे भाई का सहारा बनूंगी।"
5. रेप किया, सिर पर पत्थर मारे, जान तो बच गई...घाव नहीं भरे
वह आइना नहीं देखना चाहती...। वह कहीं जाना नहीं चाहती...। किसी से मिलना नहीं चाहती...। न हंसती और न ही रोती है...। दिन-रात अपने शरीर पर लगे जख्मों को हाथों से छूती रहती है। दो महीनेबाद भी जख्म के निशानों को छू कर सहम जाती है। पाथरडीह निवासी इस गैंगरेप पीड़िता की जिंदगी को लेकर पूरा परिवार चिंतित है। परिवार कहता है कि उनकी बिटिया और पहले वाली नहीं रही। दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसे मारने की कोशिश की थी। बड़े-बड़े पत्थरों से उसके सिर पर हमला किया था। उस चोट की वजह से वह अब भी बेहोश हो जाती है। सिर में असहनीय दर्द होता है। परिवार वालों से सवाल पूछती रहती है,क्या यह जख्म नहीं भरेंगे?घटना के बाद पीड़िता कई दिनों तक स्कूल नहीं जा सकी। किसी तरह उसे दसवीं में एडमिशन मिला है, पर वह पढ़ नहीं पा रही।
पढ़ाई बंद करना पड़ी:पीड़िता कहती है- "मैं हमेशा से ही खूब पढ़ना चाहती थी। मगर घटना के बाद करीब 2 महीने तक पढ़ाई बंद रही। अब दसवीं में एडमिशन लिया है, पर ठीक से पढ़ नहीं पा रही हूं। पड़ोसी अपने बच्चों को हमारे घर नहीं भेजना चाहते। कोई बच्चा अब हमारे घर नहीं आता। कॉलोनी की सहेलियों ने भी दूरी बढ़ा ली है। स्कूल में भी मुझसे कोई बात नहीं करता। अब तो अकेले घर से निकलने में डर लगता है। दादी मुझे स्कूल ले जाती है और फिर घर लाती है। डॉक्टर कहते हैं जख्म भर जाएंगे, थोड़ा वक्त लगेगा। दरिंदों ने जो जख्म मेरे मन पर दिए हैं, वे कैसे भरेंगे।'
6. एसपी-कलेक्टर बनना चाहती थीं, दुष्कर्म के बाद तानों से पढ़ाई छूटी
दो बहनें.. बड़ी बहन एसपी बनना चाहती थी और छोटी कलेक्टर। लेकिन करीब 10 महीने से दोनों स्कूल तक नहीं जा रहीं। इनके साथ दुष्कर्म की घटना ने दोनों को घर में ही कैद कर दिया। लोग इन्हें और इनके परिवार को पीने का पानी तक नहीं देते। कहते हैं- "तुम लोग गंदे हो चुके हो। हमारे बीच रहने के लायक नहीं। तुम लोगों ने जानबूझ कर लड़के को फंसाया है।"मामला रातू का है। दोनों बहनों के साथ 15 दिनों के अंतराल पर दुष्कर्म हुआ। बड़ी बहन के साथ स्कूल से घर लौटते वक्त पड़ोस के एक रसूखदार के बेटे ने चाकू दिखाकर दुष्कर्म किया। जबकि छोटी बहन के साथ करीब 65 वर्ष के शख्स ने उसी के घर में घुस कर दुष्कर्म किया जब घर पर कोई नहीं था। दोनों गर्भवती हो गईं। अगस्त 2018 में 9 दिनों के अंतर पर दोनों ने एक-एक बेटे को जन्म दिया है। दुष्कर्मियों ने बच्चे और बहनों को अपनाने से इनकार कर दिया।
रिश्तेदारों ने घर आना छोड़ दिया: पीड़िता कहती है- "घटना का पता चलने के बाद से सभी रिश्तेदारों ने घर आना छोड़ दिया है। फोन पर भी बात नहीं करते। पहले अक्सर हमारे घर सबका आना-जाना लगा रहता था। अब कहते हैं बदनामी हो जाएगी। समाज के लिए हम जैसे मर चुके हैं। आरोपी के परिवार वाले कहते हैं एक लड़की के लिए 1.20 लाख देंगे। केस वापस नहीं लिया तो जान से मार देंगे। मुखिया के सामने हमसे कोरे कागजों पर साइन कराया। उस पर लिखा कि सारे आरोप गलत हैं। हम एफआईआर वापस लेना चाहते हैं। हमें धमकियां भी दीं। इंसाफ के लिए कहां जाएं?"
7. मासूम को पिता के दोस्तने ही रौंदा
मानगो की आठ साल की मासूम सेउसके पिता के दोस्त ने ही दुष्कर्म किया। पढ़ने में तेज थी। क्लास में हमेशा फर्स्ट आती थी, लेकिन जिसे पिता के समान समझती थी उसी ने जिंदगी तबाह कर दी। आरोपी जेल में है, लेकिन मासूम का स्कूल छूट गया। संगी-साथी छूट गए। दो साल तक तकलीफ में रही। अब उसने स्कूल जाना शुरू किया है। बच्ची कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं है। उस घटना का जिक्र भी आता है तो सहम जाती है। उस हादसे से जुड़ी कोई भी चीज सामने आते ही जैसे उसकी जिंदगी ठहर जाती है। लोगों की नजरों और दर्दनाक यादों से मासूम को बचाने के लिए परिवार ने अपना घर ही बदल लिया। नए घर और नए परिवेश में वह फिर सामान्य तो होने लगी है, मगर आज भी रात को अचानक चीखते हुए जाग जाती है। कहती है- "बचा लो मुझे, अंकल आ रहे हैं।"
पिता का दोस्त ही शैतान निकला:पीड़िता की मां कहती है- "मेरी बेटी बेहद चंचल थी। दो भाइयों में एक बहन होने के कारण सभी उससे प्यार करते थे। लेकिन उसके पिता का दोस्त ही शैतान निकला। हादसे के बाद से वह खामोश रहने लगी है। दो साल तक दर्द से कराहती रही। आज भी रात में चीखने लगती है। रोते हुए कहती है अंकल आ रहे हैं। उनको घर में मत आने देना। उसकी बातें सुनकर आंखें भर जाती हैं। बहुत मुश्किल से उसके भाइयों और पापा ने उसे सदमे से बाहर निकाला है। अब वह सहमी रहती है। स्कूल जाना शुरू किया है। बेटी की हालत देख हमने घर ही बदल दिया।'
8. पूछताछ करने आई पुलिस बोली- बेटी को कैसे रखते थे, जो ऐसा हो गया
खुशी (काल्पनिक नाम) 16 वर्ष की है। घर में सबके साथ हंसती बोलती है। लेकिन जैसे ही कोई अनजान शख्स घर आता है, वह सहम जाती है। उसे 22 जुलाई 2018 की वह घटना याद आ जाती है जब मैट्रिक (सप्लीमेंट्री) का फॉर्म भर कर स्कूल से लौटते समय दो लड़कों ने अगवा कर उसके साथ दुष्कर्म किया था। इससे भी ज्यादा खुशी इस बात से घबराती है कि पता नहीं कौन उसे या उसके घरवालों को खरी-खोटी सुना दे। यह डर उसके मन में तब बैठा जब तीन पुलिसवाले दुष्कर्म के केस के सिलसिले में पूछताछ के लिए उसके घर आए थे। बिना किसी महिला पुलिस के। आते ही उन्होंने तेज आवाज में खुशी की मां से कहा,"आपकी बेटी बाहर क्या करने गई थी। कहां छोड़ दिया था उसे। कैसे रखते थे जो ऐसा हो गया। आप लोग अपनी लड़की का ध्यान नहीं रख सकते।"
हिम्मत हार कर पढ़ाई नहीं छोड़ी: दुष्कर्मियों ने खुशी को धमकी दी थी कि अगर उसने इस बारे में किसी को बताया तो वे सबको मार देंगे। डर से खुशी ने किसी से कुछ नहीं कहा। लेकिन हिम्मत हार कर पढ़ाई नहीं छोड़ी। पिता के साथ डालटनगंज जाकर उसने मैट्रिक की परीक्षा दी। तब तक किसी को कुछ पता नहीं था। लोगों को घटना का पता तब चला जब एक महीने बाद दुष्कर्मियों ने वॉट्सएप पर वीडियो वायरल कर दिया। परिवार ने केस दर्ज करवाया। दोनों आरोपी गिरफ्तार हो गए, मगर पुलिस या समाज का व्यवहार पूरे परिवार के लिए बदल गया।
कुछ लोग ठहराते हैं गलत:पीड़िता कहती है- "घटना के बाद कुछ रिश्तेदारों ने रिश्ता भी तोड़ दिया। हालांकि गांववाले इस मामले में उनका पूरा साथ दे रहे हैं। फिर भी कुछ लोग हैं जो पीठ पीछे मुझे ही गलत ठहराते हैं। इस बात की शिकायत मुखिया तारावती देवी से करने पर जवाब मिला कि जब ऐसी बातों की हवा चलती है तो लोग दस बातें करते हैं। तुमलोग कुछ मत बोलो। शांत रहो।बड़ी बहन की शादी तय हो गई थी, मगर लड़के वालों ने ये कहकर रिश्ता तोड़ दिया कि हमें ऐसे घर में शादी नहीं करनी जहां की लड़की ने ऐसा काम किया हो। मैं तो घटना के बाद ही डरी हुई थी, अब तो मुझे समझ में नहीं आता कि मेरा अपराध क्या है? क्यों सबलोग मुझे और मेरे परिवार को दोषी ठहरा रहे हैं, अपराध तो उन दोनों लड़कों ने किया था। मगर लगता है जैसे सब लोग उन्हें सही ठहरा रहे हों, सबकी नजरों में यही सवाल होता है कि कहीं तुम्हीं ने तो कुछ नहीं किया, तभी तो तुम्हारे साथ ही ऐसा हुआ।"
9. सात वर्षों तक पिता ही करते रहे दुष्कर्म
डॉ. आरती (काल्पनिक नाम), उम्र 25 साल। अभी डेंटिस्ट हैं। पर डॉक्टर बनने का सफर आरती के लिए बेहद कठिन रहा। उसके माता-पिता ने कभी उसे बेटी नहीं माना, क्योंकि उन्हें लड़की नहीं चाहिए थी। जन्म के बाद उसे नाम तक नहीं दिया। पिता के दोस्त ने नाम रखा।आरती कहती है, 'मेरी गृहिणी मां और डॉक्टर पिता ने मुझे ऐसे स्कूल में भेजा जहां पढ़ाई का नाम तक नहीं था। जबकि दोनों भाई अच्छे स्कूल गए। तीसरी कक्षा में जाने तक तो मैं घर का हर काम सीख चुकी थी। मैं अपने ही घर की नौकरानी थी। 5वीं में थी जब एक रात मेरी मां मुझे पिता के पास ले गई। उन्होंने मेरे साथ दुष्कर्म किया। सुबह जब मैंने मां से कहा तो उन्होंने समझाया कि यह सब मेरा सपना है। कुछ गलत नहीं हुआ है। एक-दो महीने बाद जब अपने शरीर पर मार-पीट के निशान और रोज खून देख कर मेरी समझ आया कि ये सपना नहीं है तो मैंने फिर माता-पिता से शिकायत की। तो पिता ने कहा कि हम तुम्हें घर, खाना, पढ़ाई दे रहे हैं तो इसकी फीस तो चुकानी पड़ेगी। फीस चुकाती रही तो एक साल बाद छठी कक्षा में अच्छे स्कूल में मेरा एडमिशन कराया। 12वीं में मैं टॉपर रही।
सबने कहा-सह लेती, घर क्यों छोड़ा:जब मेरे पिता ने मेरी 85 वर्ष की नानी के साथ भी दुष्कर्म किया तो हजारीबाग एसपी से मैंने शिकायत की। 15 नवंबर 2010 को पिता को जेल हुई। 6 महीने बाद ही भाइयों के कहने पर मैंने बयान वापस ले लिया। पिता छूटे और अगले ही दिन मुझे घर से निकाल दिया। मैं अपनी बुआ के पास नेपाल गई। वहां भी लोगों ने मुझे गुलाम की तरह ही रखा। एक साल बाद मैं भागकर रांची आ गई। एक एनजीओ की मदद से सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी। लोग कहते थे कुछ दिन और सह लेती, घर क्यों छोड़ा। जब हजारीबाग के एसपी अंकल को पता चला, उन्होंने डेंटल कॉलेज में दाखिला करा दिया।
डिप्रेशन में कविताएं लिखी, वही किताब बन गई, नेशनल अवॉर्ड भी मिला :आरती कहती हैं, "मेरी परवरिश किसी नॉर्मल बच्चे की तरह नहीं हुई। जो हालात थे, कभी सोचा भी नहीं था कि मैं लिख सकती हूं। मैं जब भी डिप्रेशन में होती, अपने अनुभवों और एहसास को कविता के रूप में लिख देती। कविताएं बढ़ती गईं और दोस्तों की मदद से दिल्ली के एक प्रकाशन ने इसे किताब का रूप दे दिया। अगस्त 2018 में इसके लिए मुझे नेशनल अवॉर्ड भी मिला।"
हर कदम पर आवाज दबाने की कोशिश...जानने वाले भी कहते हैं- चुप रहो
राज्य भर में भास्कर टीम जितनी भी दुष्कर्म पीड़िताओं से मिली, सबका एक दर्द साझा था कि जो भी हुआ उसके लिए समाज उन्हें ही दोषी मानता है। कोई सामने ताने मारता है तो कोई पीठ पीछे बुराई करता है। लोग दूरी बना लेते हैं, किसी न किसी बहाने मिलने से बचते हैं। जो खुद को करीबी बताते हैं...हमदर्द बताते हैं, वो भी पीड़िताओं की ही आवाज दबाने की कोशिश करते हैं। कभी सलाह तो कभी चेतावनी के रूप में यही कहते हैं कि चुप रहो, मामले को आगे मत बढ़ाओ...तुम्हारी और परिवार की बदनामी होगी। कुछ ही मामले ऐसे थे जहां समाज के कुछ लोगों ने पीड़िता और परिवार का साथ दिया और कानूनी लड़ाई में आगे बढ़ने में मदद की। एेसे मामलों में सबसे चिंताजनक रवैया पुलिस का सामने आया। केस की जांच के नाम पर पुलिस ही पीड़िता की पहचान का ढिंढोरा पूरे इलाके में पीट देती है। जिन्हें घटना का पता नहीं होता वे भी पुलिस के व्यवहार की वजह से जान जाते हैं और बहिष्कार का दायरा और बड़ा हो जाता है। अपराधी जेल जाते भी हैं तो उनके परिजन पीड़िता और उसके परिवार को धमकाते हैं। सुरक्षा का कोई भी इंतजाम पुलिस नहीं करती।
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