हमसे 28 गुना ज्यादा पेटेंट ले रहा चीन, रिसर्चर भी 5 गुना
नई दिल्ली (अमित निरंजन/ननु जोगिंदर सिंह).पंजाब में हुई इंडियन साइंस कांग्रेस में कौरवों को टेस्ट ट्यब बेबी बताने से खड़ा हुआ हंगामा अभी थमा भी नहीं था कि अब विज्ञान और तकनीकी मंत्री ने ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का नाम बदलकर भारत माता मंत्रालय रखने का प्रस्ताव देकर नई बहस शुरू कर दी है। साइंस कांग्रेस ने अब सर्कुलर जारी कर अगले वर्ष से अवैज्ञानिक बातों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन बयानों के बाद भास्कर ने देश में विज्ञान की स्थिति की पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य आए। करीब दो दशक पहले विज्ञान में भारत-चीन बराबर थे, पर अब चीन पेटेंट के मामले में हमसे करीब 28 गुना आगे है। शोधार्थी भी 5 गुना अधिक हैं।
दुनिया के विज्ञान में चीन की हिस्सेदारी बढ़ी
आज चीन एजुकेशन, रिसर्च और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत से 10 गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरू की विज्ञान की स्थिति पर दी गई रिपोर्ट में भारत रत्न वैज्ञानिक डॉ. सीएनआर राव ने बताया है कि करीब 15-20 साल पहले दुनिया के विज्ञान में भारत की हिस्सेदारी 2.5 फीसदी थी और चीन की 2 फीसदी।अब चीन की हिस्सेदारी 14 से 15 फीसदी तक पहुंच गई है, जबकि भारत की तीन से चार फीसदी ही है। इस मामले में डीआरडीओ और इसरो के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सबसे बड़ा इश्यू फंडिंग का है। इस कारण अच्छे ब्रेन इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट या सिविल में चले जाते हैं। जो ब्रेन बचता है, वह रिसर्च एंड डेवलपमेंट में आगे आता है।
छात्रों को काबिल बनाया
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विशिष्ट फैलो मनोज जोशी ने बताया कि 1967 में कल्चरल रिवोल्यूशन के बाद चीन का उच्च शिक्षा का ढांचा पूरी तरह चरमरा गया था। इसके उत्थान के लिए वहां के एक्सपर्ट्स ने प्रोजेक्ट 863 बनाया। 90 के दशक में चीन ने खूब खर्च किया। अपने छात्रों को विदेशों के उच्च स्तरीय विवि में पढ़ने के काबिल बनाया और उन्हें वहां भेजा। इनमें से अधिकांश छात्रों को मोटी तनख्वाह पर वापस चीन लाया गया। इन्होंने उन रिसर्चर की सूची बनाई, जिनके रिसर्च को ज्यादा साइट किया गया हो। यानी उस रिसर्च को ज्यादा लोगों ने उपयोग किया हो। उन प्रोफेसरों को दो लाख डॉलर यानी करीब डेढ़ करोड़ रुपए तक प्रतिवर्ष देने का ऑफर किया गया।
आने वाले सालों में चीन को पछाड़ने का दावा
भारत में सरकारी सिस्टम की बात करें तो विदेशी प्रोफेसर को भी यूजीसी गाइडलाइन के तहत यानी डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिमाह सैलरी दी जाती है। अब हमारे देश में इनोवेशन के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने कुछ माह पहले ही इनोवेशन सेल का गठन किया। मंत्रालय के इनोवेशन सेल के चीफ इनोवेशन ऑफिसर अभय जिरे ने बताया कि अटल रैंकिंग ऑफ इंस्टीट्यूट ऑन इनोवेशन अचीवमेंट (आर्या) से विश्व स्तर पर इनोवेशन में भारत अलग पहचान बना पाएगा। इन प्रयासों से हम आने वाले पांच साल में न केवल इनोवेशन के क्षेत्र में चीन को पछाड़ पाएंगे, बल्कि टॉप-20 में भी जगह बना पाएंगे। वैसेइनोवेशन को लेकर शिक्षण संस्थाओं में अरुचि का आलम यह है कि अप्रैल में आर्या के तहत टॉप 100 संस्थाओं की घोषणा होनी है। देश में कुल 40 हजार संस्थाएं हैं। इनमें से सिर्फ 1800 संस्थाएं ही हिस्सा ले रही हैं। पहली बार देश में इनोवेशन के क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की रैंक जारी की जाएगी।
भारत में सिर्फ पब्लिकेशन पर जोर
विज्ञान की इस स्थिति पर इंडियन नेशनल साइंस कांग्रेस के प्रेसिडेंट डॉ. मनोज कुमार चक्रवर्ती कहते हैं कि अब तक भारत में जो काम होता आया है, उसमें सिर्फ पब्लिकेशन पर जोर रहता था। आप रिसर्च पेपर पब्लिश नहीं करेंगे तो तरक्की नहीं मिलेगी। पिछले कुछ समय में पॉलिसी बदली है। सरकार की इस पॉलिसी में बदलाव का असर अगले 10 साल में पता लगेगा। ऐसा नहीं है कि साइंस में हर क्षेत्र में हम पिछड़ रहे हैं, बहुत से क्षेत्र में आगे भी हैं, लेकिन बहुत ज्यादा पेटेंट की जरूरत है। आज रिसर्च या ड्रग बनाने के सामान देश में आते-आते ही 6 महीने लग जाते हैं। जबकि यह काम विदेशों में अगले दिन से ही करना मुमकिन है।
टॉप वैज्ञानिक : 4000 में हमारे सिर्फ 10
हाल ही में वैज्ञानिक शोध का विश्लेषण करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था क्लेरिवेट एनालिटिक्स ने दुनिया के टॉप 4000 वैज्ञानिकों की सूची जारी की थी। इसमें भारत के केवल 10 वैज्ञानिकों के नाम हैं।
इन देशों के सबसे ज्यादा टॉप वैज्ञानिक
| अमेरिका | 2639 |
| ब्रिटेन | 546 |
| चीन | 482 |
| जर्मनी | 356 |
| ऑस्ट्रेलिया | 245 |
इनोवेशन : पिछले एक दशक में खुद से ही पिछड़ गया भारत
द ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के मुताबिक भारत का इनोवेशन के क्षेत्र में अपने स्तर पर प्रदर्शन पिछले पांच साल में काफी सुधरा है। लेकिन भारत पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में खुद से ही पिछड़ गया।
इनोवेशन की रैंकिंग
| देश | 2018 | 2013 | 2009 |
| स्विटजरलैंड | 1 | 1 | 7 |
| यूके | 4 | 3 | 4 |
| यूएसए | 6 | 5 | 1 |
| आयरलैंड | 10 | 10 | 21 |
| चीन` | 17 | 35 | 37 |
| भारत | 57 | 66 | 41 |
(स्रोत-द ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स)
इस तरह पेटेंट, रिसर्च, इनोवेशन और पढ़ाई में हम पिछड़ते गए
पेटेंट : दो दशक में चीन बढ़ गया 50 गुना
2012 से 2018 तक भारत की टॉप 68 संस्थाओं के कुल 3623 पेटेंट हुए हैं। ये वे संस्थाएं हैं, जहां शैक्षणिक स्तर पर विज्ञान से जुड़ी चीजों पर गतिविधियां ज्यादा होती हैं। इनमें से सिर्फ आठ संस्थाओं के नाम अकेले 95 फीसदी पेटेंट हैं। वहीं कुल 31 उच्च शिक्षण संस्थाएं ऐसी हैं, जिनके नाम पिछले सात साल में एक भी पेटेंट नहीं है। 2016-17 में डीआरडीओ, आईआईटी, इसरो आदि ने 781 पेटेंट फाइल किए। वहीं अमेरिकी कंपनी क्वालकॉम ने भारत में 1840 पेटेंट फाइल किए।
पेटेंट में ऐसी है हमारी स्थिति
| देश | 1997 | 2017 |
| जापान | 3.87 लाख | 3 लाख |
| अमेरिका | 2.14 लाख | 6 लाख |
| यूके | 28 हजार | 22 हजार |
| चीन | 24 हजार | 13 लाख |
| भारत | 9 हजार | 46 हजार |
(हम पेटेंट में अभी चीन से 28 गुना पीछे हैं। स्रोत-वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाईजेशन।)
रिसर्च : हमारे शोध सिर्फ 4 फीसदी ही
देश में 40 हजार कॉलेज हैं। औसतन हर कॉलेज से सिर्फ 8 विश्वस्तरीय शोध प्रकाशित हो पाते हैं। 5 साल में वैश्विक स्तर पर शोध प्रकाशित होने की संख्या में भारत का योगदान सिर्फ 4% है। देश में होने वाली रिसर्च का सिर्फ एक ितहाई विश्व स्तरीय शोध देश के 97% कॉलेजों में हुआ है। जबकि एनआईआरएफ वाले ढाई प्रतिशत कॉलेज 66.64% शोध करते हैं।
शाेध प्रकाशनों की संख्या
| विषय | विश्व | भारत | प्रतिशत |
| सभी शोध | 83,09,000 | 3,36,000 | 4% |
| इंजीनियरिंग | 24,69,000 | 1,51,000 | 6% |
| प्रबंधन | 1,11,000 | 2,700 | 2.5% |
| फार्मेसी | 2,03,000 | 10,700 | 5.25% |
(स्रोत-लोकसभा में पूछा गया सवाल)
एजुकेशन : वर्ष 2018 में चीन के मुकाबले कहां है भारत
| चीन | भारत | |
| क्यूएस रैंक के टॉप 100 कॉलेज | 6 यूनिवर्सिटी | एक भी नहीं |
| विश्व स्तर पर प्रमाणित पेपर | 4000 पेपर | 500 पेपर |
| शोधकर्ताओं की संख्या | 16 लाख | 3 लाख |
| एजुकेशन पर खर्च | जीडीपी का 4% 40 लाख करोड़ | जीडीपी का 2.5%4 लाख करोड़ |
| रिसर्च पर खर्च | जीडीपी का 2.1% | जीडीपी का 0.7% |
बजट बढ़ा :ये हाल तब है जब साइंस एंड टेक्नोलॉजी, डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, डीआरडीओ के बजट में चार साल में करीब 40% तक इजाफा हुआ है।
...और हम ये बातें कर रहे हैं
स्टेम सेल शोध और टेस्ट ट्यूब तकनीक के कारण एक मां से सैकड़ों कौरव हुए थे, यह कुछ हजारों साल पहले हुआ। देश के विज्ञान की यह स्थिति थी। -जी नागेश्वर राव, कुलपति, आंध्र यूनिवर्सिटी
(4 जनवरी 2019 को इंडियन साइंस कांग्रेस में)
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का नाम बदलकर भारत माता मंत्रालय रखा जा सकता है। इसमें कोई सोचने की बात नहीं है.... कोई प्रेजेंटेशन की बात भी नहीं है। -डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय विज्ञान और तकनीकी मंत्री
(15 जनवरी 2019 को मौसम विभाग के 144वें फाउंडेशन डे पर)
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