31 दिसंबर को राज्यसभा में पेश होगा बिल, पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
नई दिल्ली. तीन तलाक से जुड़ा नया विधेयक 31 दिसंबर को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पेश करेंगे। तीन तलाक से जुड़ा यह बिल गुरुवार को 5 घंटे चली चर्चा के बाद लोकसभा से पारित हो चुका है। राज्यसभा में मोदी सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है। इस बिल को पारित कराना सरकार के लिए चुनौती है। इससे पहले दिसंबर 2017 में भी तीन तलाक विधेयक लोकसभा से पारित हुआ था, लेकिन राज्यसभा में यह अटक गया था।
गुरुवार कोलोकसभा में विधेयक के पक्ष में 245 और विरोध में 11 वोट पड़े थे। वोटिंग के दौरान कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, द्रमुक और सपा के सदस्यों ने वॉकआउट कर दिया। सरकार 8 जनवरी तक चलने वाले शीतसत्र में ही इसे राज्यसभा से भी पारित कराना चाहती है। इसी साल सितंबर में तीन तलाक पर अध्यादेश जारी किया गया था।
राज्यसभा से विधेयक पास नहीं हुआ तो सरकार को फिर अध्यादेश लाना पड़ेगा
सरकार ने तीन तलाक को अपराध करार देने के लिए सितंबर में अध्यादेश जारी किया था। इसकी अवधि 6 महीने की होती है। लेकिन अगर इस दरमियान संसद सत्र आ जाए तो सत्र शुरू होने से 42 दिन के भीतर अध्यादेश को बिल से रिप्लेस करना होता है। मौजूदा संसद सत्र 8 जनवरी तक चलेगा। अगर इस बार भी बिल राज्यसभा में अटक जाता है तो सरकार काे दोबारा अध्यादेश लाना पड़ेगा।
16 महीने पहले आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था।
- सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पारित कराया लेकिन राज्यसभा में यह बिल अटक गया, जहां सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है।
- विपक्ष ने मांग की थी कि तीन तलाक के आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान भी हो।
- इसी साल अगस्त में विधेयक में संशोधन किए गए, लेकिन यह फिर राज्यसभा में अटक गया।
- इसके बाद सरकार सितंबर में अध्यादेश लेकर आई। इसमें विपक्ष की मांग काे ध्यान में रखते हुए जमानत का प्रावधान जोड़ा गया। अध्यादेश में कहा गया कि तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल होगी।
बिल में ये बदलाव हुए
- अध्यादेश के आधार पर तैयार किए गए नए बिल के मुताबिक, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा।
- बिल के मुताबिक, मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
कोई टिप्पणी नहीं