यहां सड़क पर एक पत्ती मिलना भी शर्मनाक मानते हैं
धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया, मावल्यान्नांग .मेघालय की राजधानी शिलांग से करीब 80 किलोमीटर दूर है डाउकी हाईवे। हाईवे से दाएं मुड़ेंगे तो 18 किलोमीटर के रास्ते मेंे दोनों ओर खेतों में फूल झाड़ू घास उगी दिखाई देती है। आगे बढ़ने पर तेज पत्ता के पेड़ों से घिरा बांग्लादेश की सीमा से लगा एक छोटा-सा गांव आता है। इस गांव का नाम है- मावल्यान्नांग। यह कोई साधारण गांव नहीं है। इसे देश ही नहीं एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का तमगा मिल चुका है।
जब शहरों में चौथा स्वच्छ सर्वेक्षण चल रहा है तब भास्कर इस गांव की सफाई देखने पहुंचा। स्वच्छता की अलख यह गांव निर्मल भारत या स्वच्छ भारत अभियान से बहुत पहले ही जगा चुका है। मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स जिले में स्थित यह गांव पहली बार 2003 में तब चर्चा में आया जब प्रतिष्ठित मैग्ज़ीन डिस्कवर ने इसे देश का सबसे स्वच्छ गांव घोषित किया। फिर 2005 में इसी पत्रिका ने इसे एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का खिताब दिया। इस गांव को ईश्वर का बगीचा (गॉड्स ओन गार्डन) भी कहा जाता है।
गांव की ख्याति ऐसी है कि अब यह देश-विदेश के पर्यटकों के लिए टूरिस्ट स्पॉट बन गया है। स्वच्छ गांव के प्रचार का परिवर्तन यह है कि करीब-करीब हर दूसरे घर में होम कॉटेज आदि की सुविधा अतिथि सत्कार के लिए उपलब्ध हो गई है। करीब 550 लोगों की आबादी और 98 मकानों वाले इस गांव में स्वच्छता जैसे लोगों का जुनून और मिशन है। स्वच्छता को सुंदरता के नए सोपान की ओर ले जाने में यहां हर व्यक्ति अपना योगदान दे रहा है।
गांव के बुजुर्ग से लेकर छोटे-छोटे बच्चे तक अपने घर और गांव को साफ रख रहे हैं। करीने से बने घरों के बाहर फूल और बांस के बने कूड़ेदान हर कहीं दिख जाते हैं। महिला प्रधान खासी जनजाति वाले गांव में प्रतिदिन पांच लोग सड़क से पेड़ों की एक-एक पत्ती तक उठाते हैं। जैसे कि सड़क पर पेड़ का पत्ता पड़ा होना लोगों के लिए शर्मिंदगी का सबब हो।
सप्ताह में एक दिन सभी लोग गांव की सड़कों पर झाड़ू भी लगाते हैं। जबकि साल में एक दिन शिलांग-डाउकी हाईवे तक के 18 किलोमीटर मार्ग को साफ करते हैं। गांव के मुखिया (जिसे स्थानीय भाषा में रंग्बा शेनॉग कहते हैं) बंजोपथ्यू खरंबा ने बताया कि हमारे गांव में सौ फीसदी साक्षरता है। सभी घरों में पाइप लाइन से ही पानी की आपूर्ति होती है। एक डाकघर, कम्युनिटी हॉल, चर्च आैर पिछले वर्ष मेघालय टूरिज्म का बना एक ऑफिस और गेस्टहाउस है। यहां टूरिस्टों से गांव वाले अंग्रेजी में बात करते हैं। खरंबा बताते हैं कि पहले गांव में खेती ही मुख्य आय का जरिया था लेकिन स्वच्छ गांव के अवाॅर्ड के बाद यहां पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ती गई।
सफाई की शुरुआत कैसे हुई इस सवाल पर वे कहते हैं कि वर्ष 1988 में प्राइमरी स्कूल के टीचर ने यह शुरुआत की थी। तब सबसे पहले गांव में सबके घरों में टाॅयलेट बनाए गए। नतीजतन 1989-90 तक सबके घरों में टॉयलेट बन गए थे।
गांव में कितने पर्यटक रोज आते हैं इस सवाल पर खरंबा कहते हैं कि ऐसे कोई गिनती का तरीका नहीं है लेकिन हम हर चार पहिया वाहन से 50 रुपए लेते हैं। औसतन प्रतिदिन 100 से अधिक गाड़ियां आती हैं। इस हिसाब से हम कह सकते हैं कि प्रतिदिन यहां 400 से 500 लोग आते हैं।
वैसे अगस्त से नवंबर महीनों के दौरान सर्वाधिक पर्यटक आते हैं। पहले यहां यात्रियों को रात होने पर उनके रुकने के लिए कोई जगह नहीं थी लेकिन अब करीब आधे घरों में हाउस स्टे और गेस्ट हाउस बन चुके हैं। कुछ घरों में तेज पत्ता के पेड़ों के ऊपर मचान बनाए गए हैं। करीब 70 फीट ऊंचे मचान के ऊपर से 20 रुपए प्रति व्यक्ति लेकर बांग्लादेश का व्यू दिखाते हैं। गांव की ख्याति ऐसी है कि यहां मेघालय के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के साथ ही देश विदेश से लोग आते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अक्टूबर 2015 में मन की बात में गांव का जिक्र किया था। गांव को स्वच्छता के लिए लगातार देश में सम्मानित किया जाता है। अगस्त 2017 में ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कानपुर में स्वच्छता महाभियान में सम्मानित किया था। दिल्ली में भी एक राष्ट्रीय पत्रिका ने सम्मानित किया। खरंबा बताते हैं कि ये पुरस्कार हमें और अधिक सफाई के लिए प्रेरित करते हैं।
हाउस स्टे चलाने वाले 50 वर्षीय खलुरशई खोंगसाइन बताते हैं कि प्रति व्यक्ति प्रति बेम्बू कॉटेज का दो हजार रुपए 24 घंटे का लेते हैं। महीने में 15 से 20 दिन हमारे दोनों कॉटेज में अतिथि रहते हैं। शुरू में हमें अचरज होता था कि गांव स्वच्छ है इसलिए लोग देखने आते हैं इसीलिए अब हर गांव वाला सफाई करता है।
गांव में प्लास्टिक की पन्नी प्रतिबंधित है। सिर्फ मैगी, बिस्कुट या अन्य सामान के साथ ही पन्नी आ जाती है। गांव में कोई भी धूम्रपान नहीं करता है। इसलिए दुकानों पर कहीं भी बीड़ी-सिगरेट नहीं मिलती है। ग्रेजुएट वानेपेंभा मेलिएंगप ने बताया कि वर्तमान में हम गांव को सफाई के बाद सुंदर दिखने पर जोर दे रहे हैं। इसीलिए हर घर के आगे फूल, बगीचा बना रहे हैं। बांस के कचरादान तो हमारे यहां वर्षों से इस्तेमाल हो रहे हैं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
कोई टिप्पणी नहीं